Sunday, August 31, 2008

बिहार में नहीं मिली है रोजगार की गारंटी

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली July 23, 2008



पंजाब में इस साल धान की रोपाई में बिहार के मजदूरों की भारी कमी देखी गई। इसका श्रेय लेते हुए बिहार सरकार ने कहा है कि मजदूरों को अपने राज्य में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे वे अब काम के लिए बाहर जाने को मजबूर नहीं हैं।

सरकार ने इस बात का भी दावा किया कि राज्य सरकार की योजनाओं सहित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत लाखों लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है। लेकिन ये सारे दावे कागजी ही नजर आते हैं। असली तस्वीर कुछ और हैं।

बेरोजगारों को सौ दिन का रोजगार देने वाली योजना राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) नाकाम साबित हो रही है। इस योजना के अंतर्गत सवा दो वर्षों में एक प्रतिशत से भी कम जॉब कार्डधारियों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध हो पाया है। इस योजना के तहत इस बात का भी प्रावधान है कि अगर जॉब कार्डधारियों को सौ दिन का रोजगार नहीं मिल पाता है, तो उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा, लेकिन काम नहीं पाने वाले बेरोजगारों और जॉब कार्डधारियों को यह भत्ता भी नसीब नहीं हुआ है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह इसके लिए राज्य सरकार को दोषी मानते हैं। उनका कहना है कि नरेगा के कार्यान्वयन में बिहार फिसड्डी साबित हो रहा है। इस पर बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा का कहना है कि नरेगा के अंतर्गत लोगों ने काम की मांग की ही नही, तो उन्हें कहां से काम दिया जाएगा। जिन लोगों ने काम की मांग की है, उन्हें रोजगार मिला है। मंत्री द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक योजना के सवा दो वर्ष बीत जाने के बाद जॉब कार्डधारियों की संख्या में सात गुणा बढ़ोतरी हुई है।

वर्ष 2006-07 में जॉब कार्डधारियों की संख्या 12.56 लाख थी। वर्ष 2007-08 में कार्डधारियों की संख्या बढ़कर 45.64 लाख हो गई। वर्ष 2008-09 के पहले तीन महीनों में जॉब कार्डधारियों की संख्या 87.51 लाख हो गई। लेकिन इन सवा दो वर्षों में केवल 70,025 परिवारों ने ही नरेगा के तहत सौ दिनों तक काम किया। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में मात्र 2554 परिवारों, वर्ष 2007-08 के दौरान 37,119 परिवारों और वर्ष 2006-07 में 30352 परिवारों को ही सौ दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया।

जॉब कार्डधारियों और सौ दिनों का रोजगार मिलने वाले परिवारों की संख्या में भारी अंतर होने के मुद्दे पर राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि जॉब कार्डधारियों ने रोजगार की मांग की ही नही है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2007-08 में 16.21 लाख जॉब कार्डधारियों ने काम करने की मांग की और 16.08 लाख लोगों को काम मिला।

एक तरफ तो मंत्री का कहना है कि 16 लाख जॉब कार्डधारी काम करने को इच्छुक हैं और दूसरी तरफ 37 हजार लोगों को रोजगार मिल पा रहा है। विभागीय मंत्री कहते हैं कि बहुत सारे गांव वाले जॉब कार्ड बन जाने का मतलब नौकरी मिलना समझने लगते हैं। उनसे अगर मिट्टी कटाई का कोई काम करने को कहा जाता है, तो वे इस तरह का काम करना नहीं चाहते। ऐसे हालात में रोजगार देने में दिक्कत आती है।

4 comments:

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

NREGA has made an immpression of being a very good government act, constituted to benifit unemployed and poor.But in reality as you really pointed out the meagre amount will not suffice to the entire family of the so called benefited ones.

Gajendra Singh Bhati
Akhar IIMC

शोभा said...

बहुत बढ़िया। स्वागत है आपका।

Anita kumar said...

अगर बिहारी पंजाब में भी नही जा रहे और अपने यहां भी रोजगार नही पा रहे तो जा कहां रहे हैं

प्रदीप मानोरिया said...

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