Sunday, August 31, 2008

विकास का भूखा पूरब का 'रूर'

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 20, 2008



देश की कुल खनिज संपदा में 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखने वाला झारखंड जोड़-तोड़ की राजनीति का शिकार होकर विकास की दौड़ में पिछड़ता नजर आ रहा है।

अपने विशाल कोयला और इस्पात भंडारों के कारण पूरब का रूर कहलाने वाले इस राज्य में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से लगभग 60 हजार करोड़ की परियोजनाएं अधर में लटकती मालूम पड़ रही है।

अकेले मधु कोड़ा सरकार की बात की जाए, तो उसने 26,000 करोड़ रुपये की राशि के समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन जमीन अधिग्रहण और राजनीतिक समस्याओं के चलते इन परियोजनाओं को जमीन पर नहीं लाया जा सका।

शिबू सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा मधु कोड़ा सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद इन परियोजनाओं का भविष्य और भी मुश्किल में दिखाई दे रहा है। राज्य में मित्तल स्टील प्लांट की 1 करोड़ 20 लाख टन इस्पात उत्पादन में 40,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना है।

इसके अलावा जिंदल स्टील प्लांट भी राज्य के चंडी इलाके में 11,000 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना पर काम कर रही है। इस बाबत जिंदल स्टील लिमिटेड ने राज्य सरकार से 250 एकड़ भूखंड की मांग की है।

जून 2008 में जिंदल पावर लिमिटेड ने राज्य सरकार से 2,640 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए एक बिजली प्लांट स्थापित करने की परियोजना के तहत 11,500 करोड़ रुपये के निवेश का अनुबंध कर चुकी है। इन बड़ी कंपनियों को अगर छोड़ दें, तो इंडियाबुल्स बिजली क्षेत्र में 6,600 करोड रुपये के निवेश की योजना बना रही है।

झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है और इसलिए राज्य को भारत निर्माण योजना के तहत बड़ी राशि केंद्र के द्वारा मुहैया कराई गई। लेकिन इस योजना के एक साल बीत जाने के बावजूद पूरी राशि का मात्र 7 प्रतिशत ही खर्च हो पाया है। वर्ष 2000 में उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड का एक साथ गठन हुआ था।

अगर उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ की बात करें, तो वहां लोगों को एक स्थायी सरकार मिली है, और इस वजह से राज्य में विकास की प्रक्रिया भी पटरी पर है। दूसरी ओर झारखंड में नक्सली समस्या भी विकास के रास्ते में रोड़ा बनी हुई है। सरकार ने इस समस्या को सुलझाने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया। झारखंड में लोगों को बिजली, पानी और सड़कों की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

अभी तक बिजली की पूरी क्षमता के 25 प्रतिशत ही इस्तेमाल हो पाया है। मुख्यमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2000 में झारखंड में जो पहला बजट पेश किया गया था, वह लाभ का बजट (सरप्लस बजट) था। लाभ के बजट का यह सिलसिला चौथे बजट तक जारी रहा। लेकिन 5वें बजट से लेकर वर्तमान 7वें बजट तक राज्य को घाटा ही नसीब हुआ है।

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