कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली September 25, 2008
नाम बड़े और दर्शन छोटे...नोएडा और ग्रेटर नोएडा यानी गौतमबुध्दनगर। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पड़ने वाला यह जिला औद्योगिक मानचित्र पर अलग ही रुतबा रखता है।
मगर अफसोस, शायद नादान राज्य सरकारें इस रुतबे की देश और सूबे के आर्थिक विकास के लिए अहमियत का अंदाजा नहीं लगा पाईं।
नहीं तो वे देसी-विदेशी कंपनियों की भारी-भरकम फौज वाले इस क्षेत्र के लिए चिड़िया के चुग्गे सरीखी सुरक्षा व्यवस्था करके इसे यूं राम भरोसे न छोड़ देतीं।
यकीन नहीं आता तो जरा मुलाहिजा फरमाइए कि यहां कुल कितने उद्योग-धंधे और आबादी है और इनकी सुरक्षा के लिए क्या सरकारी इंतजामात हैं।
अगर सिर्फ ग्रेटर नोएडा की बात की जाए, जहां एक सीईओ की खुलेआम और बर्बरतापूर्ण ढंग से हत्या की गई तो वहां 20 से अधिक बड़ी कंपनियां हैं। इनमें यामहा एस्कॉट्र्स, एशियन पेंट्स, एलजी, न्यू हॉलेंड, मोजर बेयर, एसटी, माइक्रोसॉफ्ट जैसी महारथी कंपनियां भी शामिल हैं।
इसके अलावा यहां 500 छोटी-बड़ी कंपनियां हैं। जबकि नोएडा में लगभग छह हजार औद्योगिक इकाइयां हैं, जिनमें करीब 250 जानी-मानी कंपनियों की इकाइयां हैं।
और अब जरा गौर फरमाइए , समूचे जिले की सुरक्षा व्यवस्था पर। जिले की पांच लाख की आबादी के लिए और 200 किलोमीटर परिक्षेत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कुल 2400 पुलिसकर्मियों को तैनात किया है।
अब कोई यह सरकार से यह पूछे कि आबादी और उद्योग धंधों के अनुपात में ये मुट्ठी भर पुलिसकर्मी भला हजारों औद्योगिक इकाइयों में होने वाले श्रमिक असंतोष से कैसे निबटेंगे, जबकि उनके पास इतने बड़े इलाके में होने वाले अन्य अपराधों के रोकथाम और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है।
यही वजह है कि इन इकाइयों में आए दिन होने वाली मजदूर हड़ताल कई बार खूनी रंग भी अख्तियार कर लेती है।
अगर इटली की कंपनी की ताजा शर्मनाक घटना को मजदूरों का अकस्मात उपजा असंतोष मान भी लिया जाए तो कुछ अरसा पहले हुए देवू मोटर्स कार्यालय पर कर्मचारियों के हमले को क्या माना जाए, जिसके चलते यहां कंपनी को अपनी इकाई बंद करनी पड़ी थी।
इस घटना में भी 125 कर्मचारी और 10 पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। इसी तरह 2004 में भी जेपी ग्रीन के मजदूरों ने नोएडा स्थित कार्यालय पर धावा बोला था। इसमें भी एक आदमी की मौत हो गई थी।
यही नहीं, अगस्त 2008 में सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन को लेकर किसानों ने जो तीव्र विरोध-प्रदर्शन किया था, उसमें भी 4 लोग मारे गए थे और 50 लोग घायल हुए थे।
उद्यमियों की मानें तो पिछले पांच साल में 300 से भी कम इकाइयां यहां लगी है। जबकि लगभग दो हजार से अधिक कंपनियां यहां से पलायन कर चुकी हैं।
भारतीय उद्योग संघ केगौतमबुद्ध नगर चैप्टर के अध्यक्ष जितेंद्र पारिख ने बताया कि कई कंपनियों ने काफी उम्मीदों के साथ यहां उद्योग लगाना शुरू किया था, लेकिन भविष्य सुरक्षित नजर नही आ रहा है।
Friday, September 26, 2008
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1 comment:
सही लिखा।
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