Sunday, August 31, 2008

बिहार में नहीं मिली है रोजगार की गारंटी

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली July 23, 2008



पंजाब में इस साल धान की रोपाई में बिहार के मजदूरों की भारी कमी देखी गई। इसका श्रेय लेते हुए बिहार सरकार ने कहा है कि मजदूरों को अपने राज्य में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे वे अब काम के लिए बाहर जाने को मजबूर नहीं हैं।

सरकार ने इस बात का भी दावा किया कि राज्य सरकार की योजनाओं सहित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत लाखों लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है। लेकिन ये सारे दावे कागजी ही नजर आते हैं। असली तस्वीर कुछ और हैं।

बेरोजगारों को सौ दिन का रोजगार देने वाली योजना राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) नाकाम साबित हो रही है। इस योजना के अंतर्गत सवा दो वर्षों में एक प्रतिशत से भी कम जॉब कार्डधारियों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध हो पाया है। इस योजना के तहत इस बात का भी प्रावधान है कि अगर जॉब कार्डधारियों को सौ दिन का रोजगार नहीं मिल पाता है, तो उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा, लेकिन काम नहीं पाने वाले बेरोजगारों और जॉब कार्डधारियों को यह भत्ता भी नसीब नहीं हुआ है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह इसके लिए राज्य सरकार को दोषी मानते हैं। उनका कहना है कि नरेगा के कार्यान्वयन में बिहार फिसड्डी साबित हो रहा है। इस पर बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा का कहना है कि नरेगा के अंतर्गत लोगों ने काम की मांग की ही नही, तो उन्हें कहां से काम दिया जाएगा। जिन लोगों ने काम की मांग की है, उन्हें रोजगार मिला है। मंत्री द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक योजना के सवा दो वर्ष बीत जाने के बाद जॉब कार्डधारियों की संख्या में सात गुणा बढ़ोतरी हुई है।

वर्ष 2006-07 में जॉब कार्डधारियों की संख्या 12.56 लाख थी। वर्ष 2007-08 में कार्डधारियों की संख्या बढ़कर 45.64 लाख हो गई। वर्ष 2008-09 के पहले तीन महीनों में जॉब कार्डधारियों की संख्या 87.51 लाख हो गई। लेकिन इन सवा दो वर्षों में केवल 70,025 परिवारों ने ही नरेगा के तहत सौ दिनों तक काम किया। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में मात्र 2554 परिवारों, वर्ष 2007-08 के दौरान 37,119 परिवारों और वर्ष 2006-07 में 30352 परिवारों को ही सौ दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया।

जॉब कार्डधारियों और सौ दिनों का रोजगार मिलने वाले परिवारों की संख्या में भारी अंतर होने के मुद्दे पर राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि जॉब कार्डधारियों ने रोजगार की मांग की ही नही है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2007-08 में 16.21 लाख जॉब कार्डधारियों ने काम करने की मांग की और 16.08 लाख लोगों को काम मिला।

एक तरफ तो मंत्री का कहना है कि 16 लाख जॉब कार्डधारी काम करने को इच्छुक हैं और दूसरी तरफ 37 हजार लोगों को रोजगार मिल पा रहा है। विभागीय मंत्री कहते हैं कि बहुत सारे गांव वाले जॉब कार्ड बन जाने का मतलब नौकरी मिलना समझने लगते हैं। उनसे अगर मिट्टी कटाई का कोई काम करने को कहा जाता है, तो वे इस तरह का काम करना नहीं चाहते। ऐसे हालात में रोजगार देने में दिक्कत आती है।

नेपाल के बांध रोकेंगे बिहार की बाढ़

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 03, 2008



बाढ़ की विभीषिका से बिहार परेशान है। जाहिर सी बात है कि बाढ़ की बेकाबू स्थिति से मुख्यमंत्री सचिवालय भी हलकान है।

राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब नेपाल में ऊंचे बांध बनाकर इस समस्या का स्थायी हल तलाशने की कवायद में जुटे हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय के एक अधिकारी ने बताया कि यदि नेपाल में बांध बनाए जाते हैं तो इससे बिजली भी मिलेगी और नेपाल के तराई क्षेत्रों में सिंचाई की समस्या भी हल हो जाएगी।

पूर्वी नेपाल की सप्तकोशी बहुद्देश्यीय परियोजना से बिहार के बाढ़ की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है, लेकिन यह क्रांति राष्ट्रीय मोर्चा (माओवादी से संबद्ध) के विरोध के कारण खटाई में पड़ गया है। मालूम हो कि नेपाल के साथ कई पनबिजली परियोजनाओं में बहुत सारी भारतीय कंपनियों ने रुचि दिखाई है।

नेपाल में टाटा ग्रुप सहित 10 भारतीय कंपनियां तीसरे बिजली परियोजना को हासिल करने की होड़ में शामिल है। जीएमआर ग्रुप ने तो 300 अपर कर्णाली पनबिजली परियोजना हासिल भी कर ली है। इसके साथ सतलज जल विद्युत निगम ने 402 अरुण-3 प्रोजेक्ट पर कब्जा जमाया है। इन परियोजनाओं से यह आशा की जा सकती है नेपाल में ऊंचे बांध का निर्माण हो सकता है। पिछले सप्ताह नीतीश कुमार ने बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों के दौरे के पश्चात मुख्यमंत्री ने नेपाल की सीमा रेखा के नजदीक बीरपुर (सुपौल जिला) के स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर एक उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की।

इस बैठक में कोशी प्रमंडल के आयुक्त यू के नंदा सहित मधेपुरा, सुपौल, सहरसा और अररिया जिले के जिला मजिस्ट्रेट भी शामिल हुए। बैठक के बाद उन्होंने कहा कि बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सभी सुरक्षा उपायों पर काम किया जा रहा है, हालांकि स्र्थाई समाधान तो नेपाल में बांध बनाकर ही निकाला जा सकता है। लेकिन कुल मिलाकर स्थिति यह है कि बिहार में बाढ़ की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आ रहा है। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि बाढ़ से कटिहार, नालंदा, वैशाली, पटना, मुजफ्फरपुर, सुपौल, सहरसा आदि जिलों के 540 गांवों के 4 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि बाढ़ से 775 घर पूरी तरह से तबाह हो गए और इससे लगभग 40 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। केंद्रीय मुख्यमंत्री सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बाढ़ के स्थायी समाधान के लिए राज्य सरकार काम कर रही है। इस बाबत नेपाल पर ऊंचे बांध बनाए जाने की दिशा में होने वाली बातचीत भी शामिल है। हालांकि नेपाल के साथ इस प्रकार का कोई समझौता केंद्रीय हस्तक्षेप के बगैर संभव नही है। इस संबंध में केंद्र से भी बातचीत की जाएगी। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार इस मसले को काफी गंभीरता से ले रही है। संभव है कि इस संबंध में एक उच्च स्तरीय समिति प्रधानमंत्री से मिलकर नेपाल के साथ मामले की गंभीरता को लेकर बात करे।

बिहार को खुद पर भरोसा

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 17, 2008



सड़क निर्माण को लेकर बिहार सरकार का इरादा अब बदल चुका है। अब राज्य सरकार इन कार्यों के लिए राज्य की एजेंसियों पर ही भरोसा करने लगी है।

केंद्र सरकार की ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत बनी अधिकार प्राप्त समिति ने यह सुझाव दिया है कि राज्य के कई जिलों में सड़क निर्माण का कार्य राज्य सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग को सौंप दिया जाए। इन सड़कों का निर्माण केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध राशि से कराई जाएगी।

आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने राज्य में 2880.443 किलोमीटर सड़क निर्माण का काम राज्य सरकार को आवंटित कर दिया है। इस पूरी परियोजना के अंतर्गत पूरे राज्य में 705 सड़कें बनाए जाने का प्रस्ताव है। इस निर्माण कार्य में कुल 1245.86 करोड़ रुपये की राशि खर्च होने का अनुमान है।

रूरल इंजीनियरिंग ऑर्गेनाइजेशन (आरईओ) से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस परियोजना के तहत छपरा में 279, बांका में 129, पूर्णिया में 84, कटिहार में 60, भभुआ में 51, औरंगाबाद में 54, जहानाबाद में 48 सड़कों का निर्माण कार्य शामिल किया गया है।

इन सड़कों के निर्माण कार्य के लिए निविदा और कार्य-प्रारूप के आवंटन का काम भी ग्रामीण विकास विभाग द्वारा किया जाएगा। राज्य ग्रामीण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राशि की उपलब्धता के बाद ही कार्य प्रारूप का निर्धारण संभव हो पाएगा।

उन्होंने कहा कि इन जिलों में सड़क निर्माण की प्रक्रिया की रूपरेखा और उसके बाद निविदा आमंत्रण की प्रक्रिया राशि की घोषणा के बाद की जाएगी। जिलों के हिसाब से जिस प्रकार सड़कों के निर्माण का मसौदा तैयार किया गया है, उससे तो यही लगता है कि राशि की उपलब्धता के बाद ही आगे बढ़ा जा सकता है।

विकास का भूखा पूरब का 'रूर'

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 20, 2008



देश की कुल खनिज संपदा में 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखने वाला झारखंड जोड़-तोड़ की राजनीति का शिकार होकर विकास की दौड़ में पिछड़ता नजर आ रहा है।

अपने विशाल कोयला और इस्पात भंडारों के कारण पूरब का रूर कहलाने वाले इस राज्य में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से लगभग 60 हजार करोड़ की परियोजनाएं अधर में लटकती मालूम पड़ रही है।

अकेले मधु कोड़ा सरकार की बात की जाए, तो उसने 26,000 करोड़ रुपये की राशि के समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन जमीन अधिग्रहण और राजनीतिक समस्याओं के चलते इन परियोजनाओं को जमीन पर नहीं लाया जा सका।

शिबू सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा मधु कोड़ा सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद इन परियोजनाओं का भविष्य और भी मुश्किल में दिखाई दे रहा है। राज्य में मित्तल स्टील प्लांट की 1 करोड़ 20 लाख टन इस्पात उत्पादन में 40,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना है।

इसके अलावा जिंदल स्टील प्लांट भी राज्य के चंडी इलाके में 11,000 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना पर काम कर रही है। इस बाबत जिंदल स्टील लिमिटेड ने राज्य सरकार से 250 एकड़ भूखंड की मांग की है।

जून 2008 में जिंदल पावर लिमिटेड ने राज्य सरकार से 2,640 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए एक बिजली प्लांट स्थापित करने की परियोजना के तहत 11,500 करोड़ रुपये के निवेश का अनुबंध कर चुकी है। इन बड़ी कंपनियों को अगर छोड़ दें, तो इंडियाबुल्स बिजली क्षेत्र में 6,600 करोड रुपये के निवेश की योजना बना रही है।

झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है और इसलिए राज्य को भारत निर्माण योजना के तहत बड़ी राशि केंद्र के द्वारा मुहैया कराई गई। लेकिन इस योजना के एक साल बीत जाने के बावजूद पूरी राशि का मात्र 7 प्रतिशत ही खर्च हो पाया है। वर्ष 2000 में उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड का एक साथ गठन हुआ था।

अगर उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ की बात करें, तो वहां लोगों को एक स्थायी सरकार मिली है, और इस वजह से राज्य में विकास की प्रक्रिया भी पटरी पर है। दूसरी ओर झारखंड में नक्सली समस्या भी विकास के रास्ते में रोड़ा बनी हुई है। सरकार ने इस समस्या को सुलझाने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया। झारखंड में लोगों को बिजली, पानी और सड़कों की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

अभी तक बिजली की पूरी क्षमता के 25 प्रतिशत ही इस्तेमाल हो पाया है। मुख्यमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2000 में झारखंड में जो पहला बजट पेश किया गया था, वह लाभ का बजट (सरप्लस बजट) था। लाभ के बजट का यह सिलसिला चौथे बजट तक जारी रहा। लेकिन 5वें बजट से लेकर वर्तमान 7वें बजट तक राज्य को घाटा ही नसीब हुआ है।

बिहार के बुनकर जुड़ेंगे सीधे बाजार से

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 23, 2008



बिहार में बुनकरों की स्थिति में सुधार और उन्हें सीधे बाजार से जोड़ने के लिए एक योजना शुरू की गई है। उद्योग विभाग के अंतर्गत काम कर रही हथकरघा और रेशम निदेशालय ने इस योजना का शुभारंभ किया है।

बुनकरों को उनके उत्पादों के लिए सही कीमत दिलवाने के लिए यह पहल की जा रही है। इस योजना के पहले चरण में 1700 बुनकरों को चुना गया है। उद्योग विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस योजना के लिए 34.40 लाख रुपये स्वीकृत किए गए हैं।

इस योजना के अंतर्गत बुनकरों को दो हजार रुपये की अनुदानित दर पर साइकिल उपलब्ध कराई जा रही है। इससे बुनकर सीधे तौर पर बाजार से जुड़ सकेंगे और बाजार की प्रवृति को समझने में उन्हें आसानी होगी। बाजार से सीधे जुड़ने पर ये बनुकर मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन स्थापित कर पाएंगे और बाजार की प्रवृति के हिसाब से अपने उत्पादों का नया रूप दे सकेंगे।

बिहार हथकरघा और रेशम विभाग के निदेशक प्रेम सिंह मीणा ने कहा कि पहले चरण में 13 बुनकर बहुल जिलों का चयन किया गया है। इन जिलों से लाभार्थियों की संख्या तय कर ली गई है। भागलपुर से 500, बांका से 200, गया से 150, मधुबनी से 150, अरवल से 150, नालंदा से 125, दरभंगा से 100, पटना से 75, औरंगाबाद से 50, जहानाबाद से 50, सारण से 50 और नवादा से 50 बुनकरों को चुना गया है।

सूत्रों ने बताया है कि इस योजना के तहत कुछ ऐसे लोगों को भी साइकिल वितरित की गई है, जो बुनकर के पेशे से सीधे तौर पर जुड़े हुए नहीं हैं। कई जिलों में तो अभी तक इस योजना के प्रति किसी प्रकार की पहल तक नहीं की गई है।

इस बाबत उद्योग विभाग ने उक्त जिलों के संबद्ध अधिकारियों को इस योजना को जल्द-से-जल्द लागू करने के निर्देश दिए हैं। हथकरघा और रेशम निदेशालय ने इन जिलों के जिलाधिकारियों को चुने गए बुनकरों को जल्द से जल्द साइकिल देने का निर्देश दिया है।

बिहार में छिड़ी सर्वशिक्षा अभियान की तान

बुनियादी शिक्षा में अपनी विफलताओं से सीख लेते हुए बिहार ने कायम की मिसाल

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 24, 2008



बिहार में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और बालश्रम से मुक्ति की दिशा में चलाए जा रहे अभियान की तारीफ चारों तरफ की जा रही है।

हालांकि बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में बिहार का अतीत काफी नाकामयाबी भरा रहा है। लेकिन इस नाकामी को जिस तत्परता से दूर करने की कोशिश की जा रही है, निश्चित तौर पर वह काबिले तारीफ है।

एक समय था, जब विद्यालय नहीं जाने वाले बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या बिहार में हुआ करती थी, लेकिन सर्वशिक्षा अभियान के तहत राज्य सरकार ने अपनी छवि सुधारने की पूरी कोशिश की है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इस संबंध में बिहार सरकार की तारीफ की है। आयोग ने कहा है कि शिक्षा के अधिकार और बालश्रम को खत्म करने में जिस प्रकार की प्रतिबद्धता बिहार ने दिखाई है, उससे अन्य राज्यों को सबक लेनी चाहिए।

आयोग की अध्यक्ष शांता सिन्हा ने कहा कि राज्य में सर्वशिक्षा अभियान निश्चित तौर पर काफी सफल नजर आ रहा है। उन्होंने पटना की कमलानगर और जमुई में चलाए जा रहे आवासीय ब्रिज कोर्स शिविरों को दौरा किया और उसके बाद कहा कि बिहार ने इस दिशा में सराहनीय कदम उठाए हैं।

इन शिविरों में लगभग 70 हजार बच्चे पठन-पाठन कर रहे हैं। यह ब्रिज कोर्स सर्वशिक्षा अभियान के तहत चलाया जाता है। इसके अंतर्गत बच्चों को बुनियादी जानकारियां उपलब्ध कराई जाती है। ब्रिज कोर्स पूरा करने के बाद इन बच्चों का दाखिला स्कूलों में कराया जाता है।

उसके बाद ये बच्चे पढ़ाई की मुख्यधारा में शामिल हो जाते हैं। इस ब्रिज कोर्स में उन बच्चों को शामिल किया जाता है, जो बालश्रम के दंश से पीड़ित रहते हैं। उन्हें शिक्षा प्रदान करने और समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए ब्रिज कोर्स की व्यवस्था की जाती है।

उन्होंने कहा कि बच्चों को शिक्षा के अधिकार से रू-ब-रू कराने और बालश्रम से मुक्ति देने की इससे बेहतर युक्ति नहीं हो सकती है।

बिहार: आखिर सेज से बेरुखी क्यों?

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 26, 2008



एक तरफ वाणिज्य मंत्रालय इस बात के कयास लगा रहा है कि अगले साल तक भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में निवेश 2 खरब रुपये को पार कर जाएगा, वहीं दूसरी तरफ बिहार में अभी तक किसी भी एसईजेड के लिए कोई प्रस्ताव नहीं आया है।

आज हर प्रकार के एसईजेड बन रहे हैं चाहे वह इंजीनियरिंग हो या आईटी, टेक्सटाइल या मकर्ेंडाइजिंग। स्थिति ऐसी बन रही है कि भारत का सारा निर्यात एसईजेड के माध्यम से ही होगा। लेकिन बिहार की हिस्सेदारी एसईजेड में बिल्कुल नहीं है। इससे साफ जाहिर होता है कि भविष्य में भारत के विदेश व्यापार में बिहार का योगदान बिल्कुल नहीं होगा।

बिहार के उद्योग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकार इस दिशा में बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है, फिर भी एसईजेड के प्रस्ताव सामने आए हैं। लिहाजा इस संबंध में धीमी ही सही लेकिन कुछ अरसे बाद प्रगति देखने को जरूर मिलेगी।

हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि पड़ोसी राज्यों उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में एसईजेड की स्थापना को लेकर जो भूमि विवाद उत्पन्न हुए हैं, उससे भी बिहार सरकार घबराई हुई है और इस तरह के किसी भी विवाद में नहीं पड़ना चाहती है।

यह पूछे जाने पर कि एसईजेड की प्रासंगिकता बिहार के लिए कितनी है, उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर भविष्य में सारी निर्यात गतिविधियां एसईजेड के जरिये ही होगी। एसईजेड के जरिये होने वाले निर्यातों में जिस प्रकार कर संरचना बनाई गई है, वह निर्यातकों के लिए काफी फायदेमंद भी है।

उन्होंने कहा कि बिहार एसईजेड को लेकर किसी प्रकार के भूमि अधिग्रहण विवाद में नहीं पड़ना चाहता है। यहीं वजह है कि बिहार अभी तक एसईजेड मुक्त राज्य बना हुआ है। केन्द्र सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि बिहार सरकार की तरफ से एसईजेड के प्रस्ताव को लेकर किसी भी प्रकार की पहल नहीं की गई है।

निवेश और रोजगार सृजन की अपार संभावनाओं के बावजूद बिहार सरकार की एसईजेड स्थापना के संबंध में उदासीनता निश्चित तौर पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। दरअसल सेज के तहत निर्यात को बढावा देने के लिए एक सीमित परिसर में वे सारी कर संबंधी सुविधाएं प्रदान की जाती है, जिससे आयात करना काफी आसान हो जाता है। अब आलम यह है कि अगर किसी सामग्री का निर्यात एसईजेड के बाहर से किया जाता है, तो वह इतना महंगा हो जाएगा कि बाजार में उसकी मांग काफी कम हो जाएगी।

अभी तक 513 एसईजेड को औपचारिक स्वीकृति मिल गई है। 11 अगस्त 2008 तक अधिसूचित एसईजेड की संख्या 250 है। इनमें से सिद्धांतत: 138 एसईजेड को मंजूरी मिल गई है। प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक एसईजेड के जरिये 81093.495 करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। एसईजेड की स्थापना से रोजगार का भी काफी सृजन हुआ है। इसके तहत 30 जून 2008 तक कुल 3,49,203 लोगों को रोजगार मिल चुका है।

स्पष्ट है कि इसमें अभी अपार संभावनाएं मौजूद है, जिससे रोजगार में भी काफी बढ़ोतरी होने के आसार हैं। 2006-07 में एसईजेड के माध्यम से 34,615 करोड रुपये का निवेश हुआ, जो पिछले साल के 22,840 करोड़ रुपये के मुकाबले 52 प्रतिशत अधिक रहा। वर्ष 2007-08 में निर्यात में पिछले साल के मुकाबले 92 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। पिछले चार सालों में निर्यात में 381 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वित्तीय वर्ष 2008-09 के लिए एसईजेड के जरिये 125950 करोड़ रुपये के निवेश की संभावना है।

अब तो चेतो सरकार

कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली August 26, 2008



पहले बारिश का इंतजार और फिर विनाश लीला, यही बिहार की नियति बनर् गई है। बिहार के सुपौल, अररिया, मधेपुरा और सहरसा जिलों में बाढ़ की स्थिति गंभीर हो गई है और राहत के लिए सेना को बुला लिया गया है।

इस बीच बाढ़ पर राजनीति भी गरमाने लगी है। स्थिति पर चर्चा करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुधवार को प्रधानमंत्री से मिलने नई दिल्ली आ रहे हैं जबकि राजग अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में राजद और लोजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज यहां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर राज्य सरकार पर नाकामी का आरोप जड़ दिया।

विनाशकारी बाढ़ की वजह से पूर्वी बिहार के सहरसा, सुपौल, अररिया, पूर्णिया आदि जिलों में करोड़ों की फसलें बर्बाद हो गई है और जन-जीवन पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। इन क्षेत्रों में चल रही व्यापारिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप्प हो गई है। बाढ़ प्रभावित जिलों में ट्रेन की आवाजाही भी बाधित हो गई है।

रेल मंत्रालय ने कहा है कि बाढ़ की वजह से यात्री और माल ट्रेनों का आवागमन अवरूद्ध हो गया है, जिससे काफी घाटे का सामना करना पड़ रहा है। रेलमंत्री लालू प्रसाद ने कहा है कि इन जिलों के स्टेशनों पर बाढ़ में फंसे 200 से ज्यादा कर्मचारियों को सहायता प्रदान की जाएगी। मालूम हो कि 18 अगस्त को कोसी तटबंध में भारी कटाव आया और प्रतिदिन 1,30,000 क्यूसेक पानी पूर्वी बिहार के इलाकों में आने लगा।

आश्चर्यजनक रूप से इस बार कोसी ने अपना रास्ता ही बदल लिया है और ढ़ाई सौ सालों में यह पहली बार हो रहा है। बिहार के रेजिडेंट कमिश्नर सी के मिश्रा ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि बाढ़ की विभीषिका से बचाव और राहत के लिए राज्य सरकार हरसंभव कोशिश कर रही है।

बाढ़ से होने वाले नुकसान के लेखा-जोखा के लिए एक समिति बनाई जा रही है, जो जल्द ही अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपेगी। उसके बाद केंद्र अपनी एक जांच टीम बिहार भेजेगा, जिसके आधार पर विशेष राहत पैकेजों की घोषणा की जाएगी।

बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के मुख्य सचिव आर के सिंह ने कहा कि राहत और बचाव कार्य के तहत लोगों के लिए 17000 खाने के पैकेट्स हेलिकॉप्टर के जरिये गिराया जा चुका है। लोगों को सुरक्षित स्थल पर ले जाने के लिए 290 नावों का इंतजाम किया गया है। बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने के लिए सेना की सौ जवानों वाली एक टुकड़ी दस मोटरबोट के साथ मंगलवार को मधेपुरा भेजी गई है।

राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के अतिरिक्त सचिव प्रत्यय अमृत ने बताया कि राहत कार्य में जुटे वायु सेना के हेलिकॉप्टरों की संख्या में आज एक की बढ़ोतरी कर दी गई है। अब राहत पैकेट्स तीन के बजाय चार हेलिकॉप्टरों के जरिये भेजी जाएगी।

उन्होंने कहा कि सशस्त्र सीमा बल, सैप के जवान, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया दल और जिला पुलिस के सैकड़ों जवान को इन इलाकों में तैनात कर दिया गया है। बाढ़ से विस्थापित लोगों के लिए 64 पुनर्स्थापना कैंप लगाए गए हैं।

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कोसी का कहर

कुमार नरोत्तम / August 28, 2008



विलायत अकेला हो गया है। कल तक उसके परिवार में 15 लोग थे, मां थी, बच्चे थे, पत्नी थी और भाई भी था।

अपने घर बिहार के सुपौल जिले से कोसों दूर वह इसी परिवार की खुशियों को संजोए रखने के लिए दिल्ली में रेहड़ी लगाकर फल बेचा करता है। जैसे-तैसे कुछ पैसे जमाकर वह रोज अपने परिवार वालों से फोन के जरिये बात भी कर लेता था।

उसे कभी भी अपने परिवार से दूर रहने का एहसास नहीं हुआ था। लेकिन आज न तो फोन की घंटी बज रही है और न ही परिजनों की कोई खबर लग रही है। उसकी डबडबाती आंखे यह कह जाती है कि कोसी के कहर ने उसके परिवार की खुशियां ही शायद लील न ली हो। फिलवक्त उसके परिजनों का कोई अता-पता नहीं चल रहा है। यही हाल कमोबेश उन हर लोगों का है, जिनके परिजन बाढ़ में फंसे हुए हैं।

कोसी के पानी का कहर बदस्तूर जारी है। ऐसे में लोग अपनी जिंदगी को पानी में बहता हुआ देख रहे हैं। हर रोज पानी का स्तर बढ़ता जा रहा है। लोगों से सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील की जा रही है। आलम यह है कि सहरसा और आसपास की सड़कों पर यातायात खुले होने के बावजूद आवागमन का कोई साधन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। गांव वाले अपने साथ माल-मवेशी लेकर भी भाग रहे हैं।

लोगों को जो साधन मिल रहे हैं, वे उसी के सहारे जान बचाकर भागने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रैक्टर, ट्रक, बस, ठेला आदि यातायात साधनों को काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक अभी पिछले दिनों से लगभग डेढ़ लाख क्यूसेक पानी कोसी नदी से आ रही थी। पिछला रिकॉर्ड अधिकतम 5 से 6 लाख क्यूसेक पानी छोड़ने का रहा है।

दूसरी ओर पूरब में तटबंधों के बीच अधिकतम 10 किलोमीटर का विस्तार क्षेत्र कोसी नदी को प्राप्त था, जो अब बढ़कर 25 किलोमीटर हो गया है। इस तरह अगर 5 या 6 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है, तो भी अधिक विस्तार क्षेत्र होने के कारण जलग्रहण क्षमता बढ़ी है और एक से डेढ़ फीट अधिक ऊंची पानी आने की आशंका बनती है। इस वजह से लोग बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं।

कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां कोसी की तेज रफ्तार होने की वजह से नाव भी नहीं पहुंच पा रहा है। कई इलाके में पानी के तेज बहाव के साथ मोबाइल के टावर भी बह गए हैं। इन इलाके में लोगों के लिए बाहर रह रहे अपने परिजनों से संपर्क साधित कर पाना पूरी तरह से अवरूद्ध हो गया है। दूसरी तरफ बाढ़ पीड़ितों के वे परिजन, जो बाहर रहते हैं, संपर्क साधित नहीं होने की वजह से काफी चिंतित हैं।

बाढ़ पीड़ित इलाके में बिजली की स्थिति काफी दयनीय हो गई है। ज्यादातर इलाकों में पानी बढ़ने की वजह से बिजली की आपूर्ति रोक दी गई है, ताकि किसी प्रकार की लोड शेडिंग की घटना से बचा जा सके। बिजली की आपूर्ति नहीं होने की वजह से मोबाइल धारी लोग अपना मोबाइल चार्ज नहीं कर पा रहे हैं। इस वजह से किसी से संपर्क स्थापित नहीं हो पा रहा है।

कुछ जगहों से ऐसी भी खबर आई है कि ट्रैक्टरों और ट्रकों पर जेनरेटर लगाकर गांव गांव जाकर मोबाइल आदि को चार्ज किया जा रहा है, ताकि लोगों की मोबाइल कनेक्टिविटी बनी रहे। दिल्ली में रह रहे बाढ़ पीड़ितों के परिजन भी बेहाल हैं। लक्ष्मी नगर के एक टेलीफोन बूथ पर फोन करने आए रमेश (सुपौल के निवासी) अपने परिवार जनों से संपर्क स्थापित नहीं होने की वजह से काफी चिंतित हैं।

वे कहते हैं, मेरा गांव पूरी तरह से पानी में डूबा हुआ है । पिछले दो दिनों से मैं अपने परिवार वालों से संपर्क साधने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन संपर्क नहीं हो पा रहा है। वे कहां हैं और किस हालत में हैं, ये सोचकर मेरा मन घबरा रहा है। शकरपुर स्कूल ब्लॉक बस स्टॉप की रेहड़ी पर ठेला लगाकर अमरुद बेचने वाला बिहार का निवासी भोला राम (अररिया का निवासी) भी अपने घरवालों की कोई खबर नहीं मिलने के कारण परेशान है।

गौरतलब है कि ग्रामीण इलाकों में पानी की तेज रफ्तार के कारण बीएसएनएल की सेवा भी पूर्णत: बाधित हो गई है। जाहिर तौर पर बाढ़ में फंसे लोगों की हालत तो मुहाल है हीं, बाहर रहने वाले उनके परिजन भी कोई खोज-खबर न मिलने की वजह से बेहाल हैं।