कुमार नरोत्तम / January 12, 2009
मुंबई की झुग्गी बस्ती के एक लड़के की कहानी पर आधारित फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' की सर्वश्रेष्ठ मूल संगीत रचना के लिए गोल्डन ग्लोब का पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय बन कर संगीतकार ए आर रहमान ने इतिहास रच दिया ।
वहीं इस फिल्म ने चार श्रेणियों में पुरस्कार जीत कर धूम मचा दी। झुग्गी निवासी एक युवक के करोड़पति बनने की इस कहानी का निर्देशन ब्रिटिश निर्माता डैनी बोयले ने किया है। यह फिल्म जिन चार श्रेणियों में नामित हुई थी, उन सभी में इसने बाजी मार ली। उम्मीद की जा रही है कि यह फिल्म अगले माह आस्कर समारोह में भी करिश्मा कर दिखाएगी।
फिल्म के लिए डैनी बोएले को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए ए. आर. रहमान, सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले के लिए सिमान ब्यूफोय को पुरस्कार दिया गया।
इसके अलावा फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ ड्रामा के लिए भी पुरस्कार हासिल किया है। इस फिल्म के गीत 'जय हो' के लिए 43 वर्षीय रहमान ने सर्वश्रेष्ठ मूल संगीत रचना के लिए गोल्डन ग्लोब का पुरस्कार जीता है। इस गीत को लिखा है मशहूर गीतकार गुलजार ने।
गोल्डन ग्लोब पुरस्कार वितरण समारोह का नजारा अपने शबाब पर था। ज्योंही मंच से 'किंग ऑफ बॉलीवुड' की घोषणा के साथ शाहरुख खान का परिचय कराया गया, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच काले रंग के सूट पहने बॉलीवुड के बादशाह किंग खान सबके सामने पेश हुए। मंच पर किंग खान का साथ फ्रिदा पिंटो ने दिया, जो गोल्डन गाउन पहने हुए थीं। फ्रिदा पिंटो ने फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में नायिका की भूमिका निभाई है। शाहरुख समारोह में अपने करीबी मित्र करण जौहर और पत्नी गौरी खान के साथ शिरकत कर रहे थे। वह इस समारोह में बतौर प्रस्तोता आमंत्रित थे। यह सम्मान पाने वाले किंग खान पहले भारतीय अभिनेता भी बन गए। अब सभी पुरस्कार घोषणा का इंतजार कर रहे थे। आखिरकार वह घड़ी भी आ गई। क्रिस पाइन और कैरी क्विंटो ने घोषणा की , 'द अवार्ड इन पिक्चर ड्रामा केटेगरी गोज टू..., स्लमडॉग मिलियनेयर'। बस यह सुनने भर की देर थी कि इस फिल्म की पूरी टीम अपनी अपनी सीट पर उछलने लगे और पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। सके बाद जैसे ही सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के लिए ए. आर. रहमान के नाम की घोषणा हुई, हॉल में बैठे लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। शाहरूख खान ने शुरू में ही कहा था कि अगर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार श्रेणी में ए. आ. रहमान को पुरस्कार मिलता है, तो सबसे जोर से ताली वह ही बजाएंगे। और जैसे ही इसकी घोषणा हुई, तालियां इतनी जोर से बजीं कि शाहरुख की ताली भी उसमें गुम हो गई। रहमान ने इस अभूतपूर्व उपलब्धि को देश के नाम समर्पित किया। इसके बाद तो लोगों के दिल की धड़कनें और तेज हो गई। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन और सर्वश्रेष्ठ पटकथा का अवार्ड मिला। 52 वर्षीय निर्देशक बोयले की खुशी का ठिकाना नहीं था, क्योंकि यह उनका भी पहला गोल्डन ग्लोब अवार्ड था।
क्या है गोल्डन ग्लोब?
मनोरंजन उद्योग में हुए बेहतरीन कार्यों को सम्मानित करने के लिए हॉलीवुड फॉरेन प्रेस एसोसिएशन (एचएफपीए) हर साल गोल्डन ग्लोब अवार्ड देता है। इस अवार्ड के तहत मोशन पिक्चर्स और टेलीविजन के बेहतरीन कामों को शामिल किया जाता है।
पहला गोल्डन अवार्ड का आयोजन जनवरी 1944 में लॉस एंजिल्स के 20 वें सेंचुरी फॉक्स स्टूडियो में किया गया। 66 वें गोल्डन ग्लोब अवार्ड 2008 का आयोजन 11 जनवरी 2009 को कैलिफोर्निया के बेवरली हिल्टन होटल में किया गया।
इससे पहले दो भारतीय फिल्म 'देवदास' और 'रंग दे बसंती' को गोल्डन ग्लोब अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन इन फिल्मों को कोई अवार्ड नहीं मिल सका।
क्या है स्लमडॉग मिलियनेयर?
सिमोन ब्यूफोय ने स्लमडॉग मिलियनेयर की पटकथा एक भारतीय राजनयिक- विकास स्वरूप के उपन्यास ''क्यू ऐंड ए'' को आधार बना कर लिखी। यह फिल्म 18 साल के अनाथ और अनपढ़ युवक जमाल मलिक की कहानी है, जो 'कौन बनेगा करोड़पति' में अपनी किस्मत आजमाने पहुंचता है।
जब यह लड़का एक करोड़ रुपये जीतने के करीब होता है, तो पुलिस की छानबीन में पता चलता है कि वह मुंबई की झुग्गी झोपड़ी में रहता है और पुलिस उसे हिरासत में ले लेती है। बाद में पता चलता है कि वह एक लड़की से प्यार करता है, जो 'कौन बनेगा करोड़पति' शो को बड़ी लगन से देखती है।
उसे पाने के लिए वह इस शो में पहुंचने की खातिर हर प्रकार के हथकंडे अपनाता है। यह फिल्म भारत में 23 जनवरी को रिलीज होने वाली है।
इस फिल्म में गेम शो जीतने वाले अनाथ बच्चे जमाल का किरदार देव पटेल ने निभाया है। फ्रिदा पिंटो उसकी प्रेमिका लतिका की भूमिका में है। इस फिल्म ने इससे पहले टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में 'पीपुल्स च्वाइस अवार्ड' जीता था।
Tuesday, January 13, 2009
Wednesday, November 5, 2008
सरकार दे रही 'दवा', सुधार की गुंजाइश कहां!
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली November 04, 2008
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) और रेपो रेट में कमी किए जाने और इस्पात की कीमतों में बड़ी कंपनियों द्वारा कीमत घटाए जाने के बाद भी दिल्ली और एनसीआर इलाके में मकान की कीमतों में कमी के आसार नहीं दिख रहे हैं।
लैंडक्राफ्ट डेवलपर्स के निदेशक मनु गर्ग ने बताया, 'मकान आदि के निर्माण में प्रति वर्ग फीट 4.5 से 5 किलोग्राम इस्पात का इस्तेमाल किया जाता है। अगर इस्पात की कीमतों में 6000 रुपये प्रति टन की कमी होती है, तो इसका मतलब है कि आवासीय निर्माण में 25 से 30 रुपये प्रति वर्ग फीट की बचत होगी। लागत मूल्य में इस बचत से डेवलपरों को थोड़ी बहुत राहत जरूर मिलेगी।'
रियल एस्टेट कंपनी एसवीपी के सीईओ सुनील जिंदल ने कहा, 'इस्पात की कीमतों में हुई कमी से बुनियादी ढांचा निर्माण क्षेत्र को फायदा होगा। रियल एस्टेट डेवलपरों को इससे बहुत असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। इससे लागत मूल्य में महज 1-2 फीसदी की कमी होगी, जिसके आधार पर मकान आदि की कीमतों में कोई बहुत बड़ा अंतर देखने को नहीं मिलेगा।'
गर्ग ने बताया, 'आरबीआई द्वारा दरों में कटौती, एक स्वागत योग्य कदम है। अगर ग्राहकों के लिए फायदेमंद बनाने का लक्ष्य है, तो इसके लिए बैंको को होम लोन की दर कम करनी होगी। साथ ही बैंकों को सस्ती दरों पर वित्त पोषण करने संबंधी बातों पर ध्यान देना होगा'
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) और रेपो रेट में कमी किए जाने और इस्पात की कीमतों में बड़ी कंपनियों द्वारा कीमत घटाए जाने के बाद भी दिल्ली और एनसीआर इलाके में मकान की कीमतों में कमी के आसार नहीं दिख रहे हैं।
लैंडक्राफ्ट डेवलपर्स के निदेशक मनु गर्ग ने बताया, 'मकान आदि के निर्माण में प्रति वर्ग फीट 4.5 से 5 किलोग्राम इस्पात का इस्तेमाल किया जाता है। अगर इस्पात की कीमतों में 6000 रुपये प्रति टन की कमी होती है, तो इसका मतलब है कि आवासीय निर्माण में 25 से 30 रुपये प्रति वर्ग फीट की बचत होगी। लागत मूल्य में इस बचत से डेवलपरों को थोड़ी बहुत राहत जरूर मिलेगी।'
रियल एस्टेट कंपनी एसवीपी के सीईओ सुनील जिंदल ने कहा, 'इस्पात की कीमतों में हुई कमी से बुनियादी ढांचा निर्माण क्षेत्र को फायदा होगा। रियल एस्टेट डेवलपरों को इससे बहुत असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। इससे लागत मूल्य में महज 1-2 फीसदी की कमी होगी, जिसके आधार पर मकान आदि की कीमतों में कोई बहुत बड़ा अंतर देखने को नहीं मिलेगा।'
गर्ग ने बताया, 'आरबीआई द्वारा दरों में कटौती, एक स्वागत योग्य कदम है। अगर ग्राहकों के लिए फायदेमंद बनाने का लक्ष्य है, तो इसके लिए बैंको को होम लोन की दर कम करनी होगी। साथ ही बैंकों को सस्ती दरों पर वित्त पोषण करने संबंधी बातों पर ध्यान देना होगा'
Friday, September 26, 2008
निवेश के लिए डायनामाइट है यह घटना
मजदूरों की अपनी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन किसी भी सूरत में किसी की भी हत्या को जायज नहीं ठहराया जा सकता
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली September 24, 2008
दुनिया की सर्वाधिक तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है भारत। बीते वर्षो के दौरान उद्योगों का तेली से फैलाव हुआ है। लेकिन औद्योगीकरण की चुनौतियों और जिम्मेदारी से अनजान देश अभी तक विकास का फलसफा नहीं सीख सका है और इसका खामियाजा भुगत रहा है पूरा देश। इस सिलसिले की ताजा कड़ी है ग्रेटर नोएडा स्थित कंपनी ग्रेजियोनी ट्रांसमिजियोनी की दुर्घटना।
क्या है पूरा मामला
गत सोमवार को 360 करोड़ रुपये की इटली की सहयोगी कंपनी ग्रेजियोनी ट्रांसमिजियोनी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और इंडिया हेड ललित किशोर चौधरी की हत्या बर्खास्त कर्मचारियों द्वारा कर दी गई।
लगभग 125 बर्खास्त कर्मचारी अपने हाथ में लोहे की छड़ लेकर घुसे और कंपनी के अंदर तोड़ फोड़ मचाने लगे। जब ललित ने उन लोगों को शांत होने के लिए कहा, तो वे उन पर सरियों से वार करने लगे। घायल चौधरी को कैलाश अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।
किस तरह के कदम उठाए जा सकते थे
चौधरी जिस कंपनी में थे, वह 360 करोड़ रुपये की कंपनी है और अगर ऐसी कंपनियों में ये वारदात हो सकती है, तो आप अन्य उद्योगों की सुरक्षा व्यवस्था का अंदाजा लगा सकते हैं। व्यापारियों का मानना है कि उद्योगों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ के जवानों की तैनाती की
जानी चाहिए।
नोएडा की प्रमुख औद्योगिक इकाइयां
नोएडा में लगभग 8956 औद्योगिक इकाइयां काम कर रही है, जिसमें फेडर्स लॉयड, एचसीएल-एचपी, इंडो कॉप, टी-सीरिज, बीपीएल सानयो, पैनासोनिक, सैमसंग, फीनिक्स, एसजीएस-थॉमसन, टाटा यूनिसिस, टीसीएस, मॉजर बेयर, एवरेडी आदि प्रमुख हैं।
इतनी बड़ी बड़ी कंपनियों का हब होने के बावजूद नोएडा में सुरक्षा व्यवस्था नदारद है। इस घटना के बाद इस औद्योगिक शहर में काफी संशय का माहौल है। सभी कंपनियां असुरक्षा और सरकारी उदासीनता को लेकर पसोपेश में है।
नोएडा में बड़ी संख्या में औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं, इसके बावजूद सरकार उचित सुरक्षा व्यवस्था मुहैया नहीं कराती है। ये कंपनियां या तो निजी सुरक्षा एजेंसियों का सहारा लेती है या फिर राम भरोसे ही इनका काम चलता है।
सीईओ की हत्या ने औद्योगिक महकमे में सनसनी फैला दी है। वहां के कुछ व्यापारियों का कहना है कि पुलिस तो नोएडा में शांति व्यवस्था बनाए रखने में बिल्कुल नाकाम रही है। सीईओ की हत्या से नोएडा में काफी दहशत का माहौल है।
क्या हो सकती है कार्रवाई
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता रोहित पांडेय ने बताया कि गिरफ्तार लोगों पर हत्या का आरोप तय किए जाएंगे और धारा 302 के तहत कार्रवाई की जाएगी।
इस घटना में षडयंत्र का मामला बनेगा और उन पर धारा 123 के तहत आरोप तय किए जाएंगे। जिन लोगों के नाम एफआईआर में होंगे, उनकी सजा का निर्णय मुकदमे के आधार पर किया जाएगा।
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली September 24, 2008
दुनिया की सर्वाधिक तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है भारत। बीते वर्षो के दौरान उद्योगों का तेली से फैलाव हुआ है। लेकिन औद्योगीकरण की चुनौतियों और जिम्मेदारी से अनजान देश अभी तक विकास का फलसफा नहीं सीख सका है और इसका खामियाजा भुगत रहा है पूरा देश। इस सिलसिले की ताजा कड़ी है ग्रेटर नोएडा स्थित कंपनी ग्रेजियोनी ट्रांसमिजियोनी की दुर्घटना।
क्या है पूरा मामला
गत सोमवार को 360 करोड़ रुपये की इटली की सहयोगी कंपनी ग्रेजियोनी ट्रांसमिजियोनी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और इंडिया हेड ललित किशोर चौधरी की हत्या बर्खास्त कर्मचारियों द्वारा कर दी गई।
लगभग 125 बर्खास्त कर्मचारी अपने हाथ में लोहे की छड़ लेकर घुसे और कंपनी के अंदर तोड़ फोड़ मचाने लगे। जब ललित ने उन लोगों को शांत होने के लिए कहा, तो वे उन पर सरियों से वार करने लगे। घायल चौधरी को कैलाश अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।
किस तरह के कदम उठाए जा सकते थे
चौधरी जिस कंपनी में थे, वह 360 करोड़ रुपये की कंपनी है और अगर ऐसी कंपनियों में ये वारदात हो सकती है, तो आप अन्य उद्योगों की सुरक्षा व्यवस्था का अंदाजा लगा सकते हैं। व्यापारियों का मानना है कि उद्योगों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ के जवानों की तैनाती की
जानी चाहिए।
नोएडा की प्रमुख औद्योगिक इकाइयां
नोएडा में लगभग 8956 औद्योगिक इकाइयां काम कर रही है, जिसमें फेडर्स लॉयड, एचसीएल-एचपी, इंडो कॉप, टी-सीरिज, बीपीएल सानयो, पैनासोनिक, सैमसंग, फीनिक्स, एसजीएस-थॉमसन, टाटा यूनिसिस, टीसीएस, मॉजर बेयर, एवरेडी आदि प्रमुख हैं।
इतनी बड़ी बड़ी कंपनियों का हब होने के बावजूद नोएडा में सुरक्षा व्यवस्था नदारद है। इस घटना के बाद इस औद्योगिक शहर में काफी संशय का माहौल है। सभी कंपनियां असुरक्षा और सरकारी उदासीनता को लेकर पसोपेश में है।
नोएडा में बड़ी संख्या में औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं, इसके बावजूद सरकार उचित सुरक्षा व्यवस्था मुहैया नहीं कराती है। ये कंपनियां या तो निजी सुरक्षा एजेंसियों का सहारा लेती है या फिर राम भरोसे ही इनका काम चलता है।
सीईओ की हत्या ने औद्योगिक महकमे में सनसनी फैला दी है। वहां के कुछ व्यापारियों का कहना है कि पुलिस तो नोएडा में शांति व्यवस्था बनाए रखने में बिल्कुल नाकाम रही है। सीईओ की हत्या से नोएडा में काफी दहशत का माहौल है।
क्या हो सकती है कार्रवाई
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता रोहित पांडेय ने बताया कि गिरफ्तार लोगों पर हत्या का आरोप तय किए जाएंगे और धारा 302 के तहत कार्रवाई की जाएगी।
इस घटना में षडयंत्र का मामला बनेगा और उन पर धारा 123 के तहत आरोप तय किए जाएंगे। जिन लोगों के नाम एफआईआर में होंगे, उनकी सजा का निर्णय मुकदमे के आधार पर किया जाएगा।
माली जो बाग उजाड़े, उसे...
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली September 25, 2008
नाम बड़े और दर्शन छोटे...नोएडा और ग्रेटर नोएडा यानी गौतमबुध्दनगर। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पड़ने वाला यह जिला औद्योगिक मानचित्र पर अलग ही रुतबा रखता है।
मगर अफसोस, शायद नादान राज्य सरकारें इस रुतबे की देश और सूबे के आर्थिक विकास के लिए अहमियत का अंदाजा नहीं लगा पाईं।
नहीं तो वे देसी-विदेशी कंपनियों की भारी-भरकम फौज वाले इस क्षेत्र के लिए चिड़िया के चुग्गे सरीखी सुरक्षा व्यवस्था करके इसे यूं राम भरोसे न छोड़ देतीं।
यकीन नहीं आता तो जरा मुलाहिजा फरमाइए कि यहां कुल कितने उद्योग-धंधे और आबादी है और इनकी सुरक्षा के लिए क्या सरकारी इंतजामात हैं।
अगर सिर्फ ग्रेटर नोएडा की बात की जाए, जहां एक सीईओ की खुलेआम और बर्बरतापूर्ण ढंग से हत्या की गई तो वहां 20 से अधिक बड़ी कंपनियां हैं। इनमें यामहा एस्कॉट्र्स, एशियन पेंट्स, एलजी, न्यू हॉलेंड, मोजर बेयर, एसटी, माइक्रोसॉफ्ट जैसी महारथी कंपनियां भी शामिल हैं।
इसके अलावा यहां 500 छोटी-बड़ी कंपनियां हैं। जबकि नोएडा में लगभग छह हजार औद्योगिक इकाइयां हैं, जिनमें करीब 250 जानी-मानी कंपनियों की इकाइयां हैं।
और अब जरा गौर फरमाइए , समूचे जिले की सुरक्षा व्यवस्था पर। जिले की पांच लाख की आबादी के लिए और 200 किलोमीटर परिक्षेत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कुल 2400 पुलिसकर्मियों को तैनात किया है।
अब कोई यह सरकार से यह पूछे कि आबादी और उद्योग धंधों के अनुपात में ये मुट्ठी भर पुलिसकर्मी भला हजारों औद्योगिक इकाइयों में होने वाले श्रमिक असंतोष से कैसे निबटेंगे, जबकि उनके पास इतने बड़े इलाके में होने वाले अन्य अपराधों के रोकथाम और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है।
यही वजह है कि इन इकाइयों में आए दिन होने वाली मजदूर हड़ताल कई बार खूनी रंग भी अख्तियार कर लेती है।
अगर इटली की कंपनी की ताजा शर्मनाक घटना को मजदूरों का अकस्मात उपजा असंतोष मान भी लिया जाए तो कुछ अरसा पहले हुए देवू मोटर्स कार्यालय पर कर्मचारियों के हमले को क्या माना जाए, जिसके चलते यहां कंपनी को अपनी इकाई बंद करनी पड़ी थी।
इस घटना में भी 125 कर्मचारी और 10 पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। इसी तरह 2004 में भी जेपी ग्रीन के मजदूरों ने नोएडा स्थित कार्यालय पर धावा बोला था। इसमें भी एक आदमी की मौत हो गई थी।
यही नहीं, अगस्त 2008 में सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन को लेकर किसानों ने जो तीव्र विरोध-प्रदर्शन किया था, उसमें भी 4 लोग मारे गए थे और 50 लोग घायल हुए थे।
उद्यमियों की मानें तो पिछले पांच साल में 300 से भी कम इकाइयां यहां लगी है। जबकि लगभग दो हजार से अधिक कंपनियां यहां से पलायन कर चुकी हैं।
भारतीय उद्योग संघ केगौतमबुद्ध नगर चैप्टर के अध्यक्ष जितेंद्र पारिख ने बताया कि कई कंपनियों ने काफी उम्मीदों के साथ यहां उद्योग लगाना शुरू किया था, लेकिन भविष्य सुरक्षित नजर नही आ रहा है।
नाम बड़े और दर्शन छोटे...नोएडा और ग्रेटर नोएडा यानी गौतमबुध्दनगर। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पड़ने वाला यह जिला औद्योगिक मानचित्र पर अलग ही रुतबा रखता है।
मगर अफसोस, शायद नादान राज्य सरकारें इस रुतबे की देश और सूबे के आर्थिक विकास के लिए अहमियत का अंदाजा नहीं लगा पाईं।
नहीं तो वे देसी-विदेशी कंपनियों की भारी-भरकम फौज वाले इस क्षेत्र के लिए चिड़िया के चुग्गे सरीखी सुरक्षा व्यवस्था करके इसे यूं राम भरोसे न छोड़ देतीं।
यकीन नहीं आता तो जरा मुलाहिजा फरमाइए कि यहां कुल कितने उद्योग-धंधे और आबादी है और इनकी सुरक्षा के लिए क्या सरकारी इंतजामात हैं।
अगर सिर्फ ग्रेटर नोएडा की बात की जाए, जहां एक सीईओ की खुलेआम और बर्बरतापूर्ण ढंग से हत्या की गई तो वहां 20 से अधिक बड़ी कंपनियां हैं। इनमें यामहा एस्कॉट्र्स, एशियन पेंट्स, एलजी, न्यू हॉलेंड, मोजर बेयर, एसटी, माइक्रोसॉफ्ट जैसी महारथी कंपनियां भी शामिल हैं।
इसके अलावा यहां 500 छोटी-बड़ी कंपनियां हैं। जबकि नोएडा में लगभग छह हजार औद्योगिक इकाइयां हैं, जिनमें करीब 250 जानी-मानी कंपनियों की इकाइयां हैं।
और अब जरा गौर फरमाइए , समूचे जिले की सुरक्षा व्यवस्था पर। जिले की पांच लाख की आबादी के लिए और 200 किलोमीटर परिक्षेत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कुल 2400 पुलिसकर्मियों को तैनात किया है।
अब कोई यह सरकार से यह पूछे कि आबादी और उद्योग धंधों के अनुपात में ये मुट्ठी भर पुलिसकर्मी भला हजारों औद्योगिक इकाइयों में होने वाले श्रमिक असंतोष से कैसे निबटेंगे, जबकि उनके पास इतने बड़े इलाके में होने वाले अन्य अपराधों के रोकथाम और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है।
यही वजह है कि इन इकाइयों में आए दिन होने वाली मजदूर हड़ताल कई बार खूनी रंग भी अख्तियार कर लेती है।
अगर इटली की कंपनी की ताजा शर्मनाक घटना को मजदूरों का अकस्मात उपजा असंतोष मान भी लिया जाए तो कुछ अरसा पहले हुए देवू मोटर्स कार्यालय पर कर्मचारियों के हमले को क्या माना जाए, जिसके चलते यहां कंपनी को अपनी इकाई बंद करनी पड़ी थी।
इस घटना में भी 125 कर्मचारी और 10 पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। इसी तरह 2004 में भी जेपी ग्रीन के मजदूरों ने नोएडा स्थित कार्यालय पर धावा बोला था। इसमें भी एक आदमी की मौत हो गई थी।
यही नहीं, अगस्त 2008 में सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन को लेकर किसानों ने जो तीव्र विरोध-प्रदर्शन किया था, उसमें भी 4 लोग मारे गए थे और 50 लोग घायल हुए थे।
उद्यमियों की मानें तो पिछले पांच साल में 300 से भी कम इकाइयां यहां लगी है। जबकि लगभग दो हजार से अधिक कंपनियां यहां से पलायन कर चुकी हैं।
भारतीय उद्योग संघ केगौतमबुद्ध नगर चैप्टर के अध्यक्ष जितेंद्र पारिख ने बताया कि कई कंपनियों ने काफी उम्मीदों के साथ यहां उद्योग लगाना शुरू किया था, लेकिन भविष्य सुरक्षित नजर नही आ रहा है।
Monday, September 22, 2008
केंद्र बेचेगा 'महंगा' गेहूं, पर खरीदेगा कौन
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली September 21, 2008
खाद्यान्न प्रबंधन पर सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है। सरकार ने पहले तो बाजार की स्थिति का बिना अध्ययन किए 1000 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं की खरीद की।
अब उसे खुले बाजारों में सस्ती दर पर बेचने की योजना बनाई जा रही है। लेकिन आलम यह है कि देश के लगभग सभी राज्यों में इस समय गेहूं निर्धारित समर्थन मूल्य से भी कम पर खुले बाजार में बिक रहा है। ऐसे में अंदाजा लग सकता है कि इस महंगे सरकारी गेहूं को खरीदेगा कौन? वैसे खाद्य मंत्रालय ने घाटा सहकर भी इस गेहूं को बेचने का निर्णय लिया है।
उसने इस गेहूं की अलग अलग राज्यों में भिन्न भिन्न कीमतें घोषित की हैं।उत्तर प्रदेश में अलीगढ़, कानपुर, फैजाबाद की मंडियों में गेहूं का भाव 1055 रुपये प्रति क्विंटल है।
पंजाब की खन्ना मंडी में गेहूं 970 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है जबकि यहां के लिए केंद्र की दर बाजार भाव से ज्यादा यानी 1021 रुपये प्रति क्विंटल है। गुजरात की राजकोट मंडी में गेहूं की कीमत औसतन 1000 रुपये प्रति क्विंटल है और केंद्र ने यहां गेहूं 1088 रुपये प्रति क्विंटल बेचने का निर्णय लिया है।
दक्षिण भारत में कर्नाटक की नारकुंडा मंडी में गेहूं का भाव 1140 रुपये प्रति क्विंटल है और केंद्र ने यहां के लिए 1160 रुपये का भाव निर्धारित किया है। मध्यप्रदेश की पथरिया मंडी में गेहूं की कीमत 975 रुपये से 1000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है, जबकि केंद्र ने यहां के लिए 1075 रुपये का भाव निर्धारित किया है।
जाहिर है कि राज्यों की मंडियों में केंद्र द्वारा निर्धारित भाव से कम पर गेहूं बिक रहा है।
केंद्र ने अप्रैल-जून में 1000 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदा था। उस खरीद भाव में आढ़ती कमीशन, लदाई, ढुलाई और भंडारण का भी खर्च जोड़ने पर यह कीमत लगभग 1250 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थी।
लेकिन जब राज्यों की मंडियों में इससे कम दाम पर गेहूं बिक रहा था, तो केंद्र की यह मजबूरी हो गई कि वह भी कम दामों पर ही गेहूं बेचे। वैसे भी, खुले बाजार में गेहूं पर्याप्त मात्रा में है, इसलिए भी केंद्र पर कम दाम पर गेहूं बेचने का दबाव है।
खाद्य और कृषि मंत्री शरद पवार ने जुलाई में 60 लाख टन गेहूं खुले बाजारों में बेचने का निर्णय लिया था, जिसे कैबिनेट ने भी मंजूरी दे दी थी। लेकिन राज्यों की मंडियों में कम दाम पर गेहूं बिकने से केंद्र की मुसीबत बढ़ गई और उसे कम दामों पर इन मंडियों में गेहूं बेचने को मजबूर होना पड़ा।
सदर बाजार ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ओमप्रकाश जैन ने बताया कि सरकार जो कदम उठा रही है, वह सिर्फ राजनीतिक चोंचले हैं। दरअसल सरकार के इस कदम से किसानों को तात्कालिक लाभ पहुंचेगा, लेकिन इसे ज्यादा दिनों तक जारी नही रखा जा सकता है।
खाद्यान्न प्रबंधन पर सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है। सरकार ने पहले तो बाजार की स्थिति का बिना अध्ययन किए 1000 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं की खरीद की।
अब उसे खुले बाजारों में सस्ती दर पर बेचने की योजना बनाई जा रही है। लेकिन आलम यह है कि देश के लगभग सभी राज्यों में इस समय गेहूं निर्धारित समर्थन मूल्य से भी कम पर खुले बाजार में बिक रहा है। ऐसे में अंदाजा लग सकता है कि इस महंगे सरकारी गेहूं को खरीदेगा कौन? वैसे खाद्य मंत्रालय ने घाटा सहकर भी इस गेहूं को बेचने का निर्णय लिया है।
उसने इस गेहूं की अलग अलग राज्यों में भिन्न भिन्न कीमतें घोषित की हैं।उत्तर प्रदेश में अलीगढ़, कानपुर, फैजाबाद की मंडियों में गेहूं का भाव 1055 रुपये प्रति क्विंटल है।
पंजाब की खन्ना मंडी में गेहूं 970 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है जबकि यहां के लिए केंद्र की दर बाजार भाव से ज्यादा यानी 1021 रुपये प्रति क्विंटल है। गुजरात की राजकोट मंडी में गेहूं की कीमत औसतन 1000 रुपये प्रति क्विंटल है और केंद्र ने यहां गेहूं 1088 रुपये प्रति क्विंटल बेचने का निर्णय लिया है।
दक्षिण भारत में कर्नाटक की नारकुंडा मंडी में गेहूं का भाव 1140 रुपये प्रति क्विंटल है और केंद्र ने यहां के लिए 1160 रुपये का भाव निर्धारित किया है। मध्यप्रदेश की पथरिया मंडी में गेहूं की कीमत 975 रुपये से 1000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है, जबकि केंद्र ने यहां के लिए 1075 रुपये का भाव निर्धारित किया है।
जाहिर है कि राज्यों की मंडियों में केंद्र द्वारा निर्धारित भाव से कम पर गेहूं बिक रहा है।
केंद्र ने अप्रैल-जून में 1000 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदा था। उस खरीद भाव में आढ़ती कमीशन, लदाई, ढुलाई और भंडारण का भी खर्च जोड़ने पर यह कीमत लगभग 1250 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थी।
लेकिन जब राज्यों की मंडियों में इससे कम दाम पर गेहूं बिक रहा था, तो केंद्र की यह मजबूरी हो गई कि वह भी कम दामों पर ही गेहूं बेचे। वैसे भी, खुले बाजार में गेहूं पर्याप्त मात्रा में है, इसलिए भी केंद्र पर कम दाम पर गेहूं बेचने का दबाव है।
खाद्य और कृषि मंत्री शरद पवार ने जुलाई में 60 लाख टन गेहूं खुले बाजारों में बेचने का निर्णय लिया था, जिसे कैबिनेट ने भी मंजूरी दे दी थी। लेकिन राज्यों की मंडियों में कम दाम पर गेहूं बिकने से केंद्र की मुसीबत बढ़ गई और उसे कम दामों पर इन मंडियों में गेहूं बेचने को मजबूर होना पड़ा।
सदर बाजार ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ओमप्रकाश जैन ने बताया कि सरकार जो कदम उठा रही है, वह सिर्फ राजनीतिक चोंचले हैं। दरअसल सरकार के इस कदम से किसानों को तात्कालिक लाभ पहुंचेगा, लेकिन इसे ज्यादा दिनों तक जारी नही रखा जा सकता है।
Friday, September 19, 2008
पेशेवर कर्मचारी ही बचा पाएंगे रिटेल की चमक
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली September 17, 2008
रिटेल क्षेत्र में प्रबंधन के हर स्तर पर तंगी का माहौल है। वैसे तो यह क्षेत्र अपना विस्तार काफी तेजी से कर रहा है, लेकिन निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर पर दक्ष कर्मचारियों की भारी कमी है।
कॉलेज और अन्य प्रशिक्षण संस्थानों से भी प्रशिक्षुओं की काफी कम संख्या रिटेल क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके पीछे एक वजह तो यह बताई जाती है कि इन संस्थानों में जो पाठयक्रम चलाए जाते हैं, वह रिटेल कंपनियों की जरूरतों के अनुसार नही होते हैं। इसी तरह की समस्या बीमा और दूरसंचार क्षेत्रों में भी देखने को मिल रही है।
रिटेल क्षेत्र में जो दूसरी समस्या कर्मचारियों को लेकर आ रही है, वह यह है कि मौजूदा कर्मचारियों में भी अनुभवों की कमी देखने को मिल रही है। वे रिटेल क्षेत्र की जरूरतों से अच्छी तरह से वाकिफ नही होते हैं और इसलिए पूरी दक्षता के साथ काम नही कर पाते हैं।
बहुत सारी कंपनियों ने तो अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए अपने स्तर से ही प्रयास करना शुरू कर दिया है। ये कंपनियां इस तरह के कदम इसलिए उठा रही है, क्योंकि आज दक्ष कर्मचारियों और मानव संसाधन का होना काफी जरूरी होता है।
पेंटालून रिटेल के एचआर प्रमुख संजय जोग ने बिजनेस स्टैंडर्ड को टेलीफोन पर बताया कि रिटेल क्षेत्र में रोजगार के काफी अवसर उपलब्ध हैं। इस बाबत अब संस्थानों में भी जागरूकता आई है और वे इस क्षेत्र के अनुरूप छात्रों को तैयार भी कर रहे हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अभी इस क्षेत्र के लिए दक्ष प्रोफेशनल की कमी है।
यह बात भी तय है कि अगर आपको आज के प्रोफेशनल जमाने में टिकना और बेहतर प्रदर्शन करना है, तो आपके पास कुशल और स्मार्ट मानव संसाधन का रहना बहुत जरूरी है। आज रिटेल क्षेत्र की हर बड़ी कंपनियां अपने एचआर (मानव संसाधन) नीतियों में परिवर्तन ला रही है और दक्षता प्रशिक्षण के लिए अपने कुल बजट का 2 से 5 प्रतिशत निवेश कर रही है।
फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, नई दिल्ली, की निदेशक डॉ. सीमा संघी कहती हैं कि आजकल काफी छात्र रिटेल मैनेजमेंट की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि रिटेल क्षेत्र में आईटी और बीपीओ क्षेत्रों की तरह काफी मात्रा में कमाने के अवसर सीमित होते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इन क्षेत्रों के व्यापार की प्रवृति बिक्री और लाभ पर आधारित होती है। इस तरह इन क्षेत्रों के लिए दक्ष मानव संसाधन होना आज की जरूरत हो गई है।
इसलिए इन कंपनियों को इस तरह के कार्य मानक बनाने होंगे ताकि कर्मचारी अपने को इन क्षेत्रों से जोड़ पाएं और विकास में भागीदार बन सके। पांच वर्षों में संगठित रिटेल क्षेत्र में 15 से 20 लाख रोजगार सृजन होने की संभावना है। इसी अवधि में रिटेल क्षेत्र में 40 फीसदी विकास की भी उम्मीद है। इसलिए रिटेल क्षेत्र के लिए निचले स्तर से लेकर प्रबंधन के ऊपरी स्तर तक दक्ष प्रोफेशनल का चयन जरूरी है।
रिटेल क्षेत्र में प्रबंधन के हर स्तर पर तंगी का माहौल है। वैसे तो यह क्षेत्र अपना विस्तार काफी तेजी से कर रहा है, लेकिन निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर पर दक्ष कर्मचारियों की भारी कमी है।
कॉलेज और अन्य प्रशिक्षण संस्थानों से भी प्रशिक्षुओं की काफी कम संख्या रिटेल क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके पीछे एक वजह तो यह बताई जाती है कि इन संस्थानों में जो पाठयक्रम चलाए जाते हैं, वह रिटेल कंपनियों की जरूरतों के अनुसार नही होते हैं। इसी तरह की समस्या बीमा और दूरसंचार क्षेत्रों में भी देखने को मिल रही है।
रिटेल क्षेत्र में जो दूसरी समस्या कर्मचारियों को लेकर आ रही है, वह यह है कि मौजूदा कर्मचारियों में भी अनुभवों की कमी देखने को मिल रही है। वे रिटेल क्षेत्र की जरूरतों से अच्छी तरह से वाकिफ नही होते हैं और इसलिए पूरी दक्षता के साथ काम नही कर पाते हैं।
बहुत सारी कंपनियों ने तो अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए अपने स्तर से ही प्रयास करना शुरू कर दिया है। ये कंपनियां इस तरह के कदम इसलिए उठा रही है, क्योंकि आज दक्ष कर्मचारियों और मानव संसाधन का होना काफी जरूरी होता है।
पेंटालून रिटेल के एचआर प्रमुख संजय जोग ने बिजनेस स्टैंडर्ड को टेलीफोन पर बताया कि रिटेल क्षेत्र में रोजगार के काफी अवसर उपलब्ध हैं। इस बाबत अब संस्थानों में भी जागरूकता आई है और वे इस क्षेत्र के अनुरूप छात्रों को तैयार भी कर रहे हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अभी इस क्षेत्र के लिए दक्ष प्रोफेशनल की कमी है।
यह बात भी तय है कि अगर आपको आज के प्रोफेशनल जमाने में टिकना और बेहतर प्रदर्शन करना है, तो आपके पास कुशल और स्मार्ट मानव संसाधन का रहना बहुत जरूरी है। आज रिटेल क्षेत्र की हर बड़ी कंपनियां अपने एचआर (मानव संसाधन) नीतियों में परिवर्तन ला रही है और दक्षता प्रशिक्षण के लिए अपने कुल बजट का 2 से 5 प्रतिशत निवेश कर रही है।
फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, नई दिल्ली, की निदेशक डॉ. सीमा संघी कहती हैं कि आजकल काफी छात्र रिटेल मैनेजमेंट की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि रिटेल क्षेत्र में आईटी और बीपीओ क्षेत्रों की तरह काफी मात्रा में कमाने के अवसर सीमित होते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इन क्षेत्रों के व्यापार की प्रवृति बिक्री और लाभ पर आधारित होती है। इस तरह इन क्षेत्रों के लिए दक्ष मानव संसाधन होना आज की जरूरत हो गई है।
इसलिए इन कंपनियों को इस तरह के कार्य मानक बनाने होंगे ताकि कर्मचारी अपने को इन क्षेत्रों से जोड़ पाएं और विकास में भागीदार बन सके। पांच वर्षों में संगठित रिटेल क्षेत्र में 15 से 20 लाख रोजगार सृजन होने की संभावना है। इसी अवधि में रिटेल क्षेत्र में 40 फीसदी विकास की भी उम्मीद है। इसलिए रिटेल क्षेत्र के लिए निचले स्तर से लेकर प्रबंधन के ऊपरी स्तर तक दक्ष प्रोफेशनल का चयन जरूरी है।
Wednesday, September 17, 2008
अंतरराष्ट्रीय तेल फर्मों को डाला चारा
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली September 17, 2008
भारत सरकार देश के तेल और गैस क्षेत्र में बड़ी अंतरराष्ट्रीय तेल मार्केटिंग कंपनियों को निवेश करने के लिए आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रही है।
लेकिन इस दिशा में कोई बड़ा निवेश संभव नहीं हो पा रहा है। इसलिए देश के पेट्रोलियम क्षेत्र में खोज और उत्खनन के लिए मौजूद नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (नेल्प) में बदलाव की प्रक्रिया पर विचार किया जा रहा है।
भारत चाहता है कि एक्सॉन मोबिल, टोटाल, ब्रिटिश पेट्रोलियम जैसी विदेशी कंपनियां देश के तेल और गैस क्षेत्र में निवेश करें। सरकारी सूत्रों का कहना है कि नेल्प के सातवें दौर में हालांकि विदेशी कंपनियों ने काफी रुचि दिखाई है, लेकिन इसके बावजूद विदेशी कंपनियों का निवेश बहुत कम रहा है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार नियमों में बदलाव के कई कारण हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिर तेल की कीमतें इसमें से एक है। इसलिए नेल्प के नियम इस प्रकार होने चाहिए कि इन तेल कंपनियों को बेहतर रिटर्न सुनिश्चित कराया जा सके।
सूत्रों का यह मानना है कि जब तक अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियां निवेश के लिए उत्सुक नहीं होगी, तब तक अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आएगा। पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने भी विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए विक्रम मेहता की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया था।
भारत सरकार देश के तेल और गैस क्षेत्र में बड़ी अंतरराष्ट्रीय तेल मार्केटिंग कंपनियों को निवेश करने के लिए आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रही है।
लेकिन इस दिशा में कोई बड़ा निवेश संभव नहीं हो पा रहा है। इसलिए देश के पेट्रोलियम क्षेत्र में खोज और उत्खनन के लिए मौजूद नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (नेल्प) में बदलाव की प्रक्रिया पर विचार किया जा रहा है।
भारत चाहता है कि एक्सॉन मोबिल, टोटाल, ब्रिटिश पेट्रोलियम जैसी विदेशी कंपनियां देश के तेल और गैस क्षेत्र में निवेश करें। सरकारी सूत्रों का कहना है कि नेल्प के सातवें दौर में हालांकि विदेशी कंपनियों ने काफी रुचि दिखाई है, लेकिन इसके बावजूद विदेशी कंपनियों का निवेश बहुत कम रहा है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार नियमों में बदलाव के कई कारण हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिर तेल की कीमतें इसमें से एक है। इसलिए नेल्प के नियम इस प्रकार होने चाहिए कि इन तेल कंपनियों को बेहतर रिटर्न सुनिश्चित कराया जा सके।
सूत्रों का यह मानना है कि जब तक अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियां निवेश के लिए उत्सुक नहीं होगी, तब तक अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आएगा। पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने भी विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए विक्रम मेहता की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया था।
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