सत्येन्द्र प्रताप
बाजार के बड़े-बड़े खिलाड़ी भी वायदा बाजार की चाल समझने में गच्चा खा जाते हैं। शेयर बाजार में पैसा लगाना, उससे मुनाफा कमाने इच्छा आज हर उस भारतीय को है जो कुछ पैसे अपनी तनखाह से बचा लेता है। बाजार गिर रहा है, बाजार चढ़ रहा है। वह देखता है, सोचता है- लेकिन क्या तमाशा है उसे समझ में नहीं आता।आईपीओ की बात करें तो रिलायंस जैसे ही बाजार में आया उसका शेयर बारह गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ। वास्तविक धरातल पर कंपनियों के पास कुछ हो या न हो अगर बाजार में एक बार शाख बन गई या किसी तरीके से बनाने में कामयाब रहे तो रातोंरात अरबपति और खरबपति बनते देर नहीं लगती। शेयर का दाम भी बंबई शेयर बाजार में बेतहाशा बढ़ता है। किस तरह बढ़ता है? पता नहीं। इसका कोई ठोस आधार नहीं है। इसीलिए तो इसे वायदा कारोबार कहते हैं। आम लोगों को लगता है कि कंपनी को लाभ हो रहा है इसलिए शेयर बढ़ रहा है, लेकिन हकीकत इससे अलग है। किसी कंपनी का शेयर जनवरी में ४० रुपये का है तो फरवरी में वह ६० रुपये का हो जाता है। हालांकि कंपनी जब अपना तिमाही मुनाफा पेश करती है तो महज १०-१५ प्रतिशत लाभ दिखाती है। स्वाभाविक है शेयर भहराएगा ही। कुछ कंपनियां तमाम प्रोजेक्ट दिखाकर कृत्रिम बढ़त को सालोंसाल बनाए रखती हैं। सपने दिखाती रहती हैं और जनता से पैसा खींचती रहती हैं। अब कंपनी की दूरगामी परियोजनाओं की सफलता पर निर्भर करता है कि वे बाजार में टिकी रहती हैं या सारा पैसा लेकर रफूचक्कर हो जाती हैं। यह भी संभव है कि कृतिमता कुछ इस तरह बनाई जाए कि एक कंपनी की ३०० परियोजनाएं हों और जिसमें सबसे ज्यादा निवेश हो जाए उसे बर्बाद बता दिया जाए। बाकी के शेयरों में खुद निवेश कर कृत्रिम बढ़त बनाए रखा जाए।इन सभी तथ्यों से आम निवेशक को हमेशा सावधान रहने की जरूरत है। भारतीय शेयर बाजार में वर्ष 1930 में बॉम्बे रिक्लेमेशन नामक कंपनी सूचीबद्ध थी जिसका भाव उस समय छह हजार रुपये प्रति शेयर बोला जा रहा था, जबकि लोगों का वेतन उस समय दस रुपए महीना होता था। कंपनी का दावा था कि वह समुद्र में से जमीन निकालेगी और मुंबई को विशाल से विशाल शहर में बदल देगी लेकिन हुआ क्या। कंपनी दिवालिया हो गई और लोगों को लगी बड़ी चोट। अब यह लगता है कि अनेक रियालिटी या कंसट्रक्शंस के नाम पर कुछ कंपनियां फिर से इतिहास दोहरा सकती हैं। आप खुद सोचिए कि ऐसा क्या हुआ कि रातों रात ये कंपनियां जो अपने आप को करोड़ों रुपए की स्वामी बता रही हैं, आम निवेशक को अपना मुनाफा बांटने आ गईं।इसमें किसी भी तरह का फ्राड संभव है और ऐसा न हो कि बरबादी के बाद रोने पर आंसू भी न आए। हमेशा ठोस परियोजनाओं और ठोस कारोबार की ओर नजर रखें और लाभ के चक्कर में किसी एक कंपनी में बहुत ज्यादा निवेश न करें। इसी में भलाई है।
Wednesday, March 19, 2008
दलाई लामा का दर्द
नरोत्तम
भगवान बुद्ध के अनुयाइयों ने कभी सोचा भी न होगा कि उन्हें अपनी जिंदगी के लिए इतना संघर्ष करना पड़ेगा। होता भी कुछ ऐसा है कि आम लोगों की रक्षा का ढोंग करने वाले वर्तमान चालू कम्युनिष्टों ने सीधे सादे लोगों का जीना दूभर कर दिया है। हालत यहां तक पहुंच गई है कि तिब्बत में जो लोग बचे हैं वे मौत के दिन गिन रहे हैं। दलाई लामा का नाम लेते हैं और जिंदा हैं। उन्हें आस है फिजां बदलेगी। दलाई लामा भी अपनी लड़ाई लड़े जा रहे हैं, लेकिन पूंजीवादी दुनिया में शान्ति के इस पुरोधा की सुनने वाला कौन है।धर्मशाला मे मंगलवार को दलाई लामा के अनुयायियों ने शक्ति प्रदर्शन किया और ये साबित करने की कोशिश की के अभी भी दलाई लामा ही तिब्बतियों के सर्वोच्च नेता हैं, बेशक कुछ संगठन उनसे सहमत ना हों. इन प्रदर्शनों के बीच ही दलाई लामा ने उन संगठनों के नेताओं से बातचीत भी की जो उनसे सहमत नहीं हैं. तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा के प्रवक्ता के अनुसार दलाई लामा ने उन्हें संघर्ष का तरीक़ा बदलने की सलाह दी. इन संगठनों में निर्वासित तिब्बतियों की यूथ कांग्रेस, डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ तिब्बत और कई संगठनों के नेता शामिल थे.
दलाई लामा ने इन नेताओं से चीन सीमा की तरफ़ जारी संगठनों के मार्च को रद्द करने के लिए कहा है. हांलाकि दलाई लामा के प्रवक्ता का कहना है अब ये संगठनों की ज़िम्मेदारी है की वो दलाई लामा की बात को मानते हैं या नहीं. संगठनों की तरफ से तो आक्रोश नजर आता है लेकिन शान्ति के पुजारी दलाई लामा अपने क्रोध को पी चुके हैं। शायद उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा कि जो जनता उन्हें देवता मानती है, अवतार मानकर पूजा करती है उनकी रक्षा कैसे की जाए।
भगवान बुद्ध के अनुयाइयों ने कभी सोचा भी न होगा कि उन्हें अपनी जिंदगी के लिए इतना संघर्ष करना पड़ेगा। होता भी कुछ ऐसा है कि आम लोगों की रक्षा का ढोंग करने वाले वर्तमान चालू कम्युनिष्टों ने सीधे सादे लोगों का जीना दूभर कर दिया है। हालत यहां तक पहुंच गई है कि तिब्बत में जो लोग बचे हैं वे मौत के दिन गिन रहे हैं। दलाई लामा का नाम लेते हैं और जिंदा हैं। उन्हें आस है फिजां बदलेगी। दलाई लामा भी अपनी लड़ाई लड़े जा रहे हैं, लेकिन पूंजीवादी दुनिया में शान्ति के इस पुरोधा की सुनने वाला कौन है।धर्मशाला मे मंगलवार को दलाई लामा के अनुयायियों ने शक्ति प्रदर्शन किया और ये साबित करने की कोशिश की के अभी भी दलाई लामा ही तिब्बतियों के सर्वोच्च नेता हैं, बेशक कुछ संगठन उनसे सहमत ना हों. इन प्रदर्शनों के बीच ही दलाई लामा ने उन संगठनों के नेताओं से बातचीत भी की जो उनसे सहमत नहीं हैं. तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा के प्रवक्ता के अनुसार दलाई लामा ने उन्हें संघर्ष का तरीक़ा बदलने की सलाह दी. इन संगठनों में निर्वासित तिब्बतियों की यूथ कांग्रेस, डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ तिब्बत और कई संगठनों के नेता शामिल थे.
दलाई लामा ने इन नेताओं से चीन सीमा की तरफ़ जारी संगठनों के मार्च को रद्द करने के लिए कहा है. हांलाकि दलाई लामा के प्रवक्ता का कहना है अब ये संगठनों की ज़िम्मेदारी है की वो दलाई लामा की बात को मानते हैं या नहीं. संगठनों की तरफ से तो आक्रोश नजर आता है लेकिन शान्ति के पुजारी दलाई लामा अपने क्रोध को पी चुके हैं। शायद उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा कि जो जनता उन्हें देवता मानती है, अवतार मानकर पूजा करती है उनकी रक्षा कैसे की जाए।
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